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तृष्णा से तृप्ति तक (Paper Back)




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Book Details

Author Osho
Publication Penguin India
Language Hindi
Category Spirituality
Pages 436
Dimension 2 x 14 x 22 cm
Weight 250 gm
ISBN 9780143459651
About Book बुद्ध को मरे पच्चीस सौ साल हो गए, लेकिन जिनको भी थोड़ी सी समझ है, उन्हें आज भी उनकी सुगंध मिल जाती है। जिन्हें समझ नहीं थी, उन्हें तो उनके साथ मौजूद होकर भी नहीं मिली। जिनमें थोड़ी संवेदनशीलता है, पच्चीस सौ साल ऐसे खो जाते हैं कि पता नहीं चलता; फिर बुद्ध जीवंत हो जाते हैं। फिर तुम्हारे नासापुट उनकी गंध से भर जाते हैं। फिर तुम उनके साथ आनंदमग्न हो सकते हो। समय का अंतराल अंतराल नहीं होता; न बाधा बनती है। सिर्फ संवेदनशीलता चाहिए। ओशो आज कथा को वैसे ही कह देना, जैसी ढाई हजार साल पहले कही गई थी, गलत होगा; बुद्ध के साथ अन्याय होगा। ढाई हजार साल में जैसे आदमी बदला है, ऐसे ही कथा को भी बदलना चाहिए। तो ही आज के आदमी को पकड़ में आएगी। ढाई हजार साल पहले जो कथा लिखी गई थी, वह तो ऐसा है, जैसे खदान से निकाला गया अनगढ़ हीरा। कोई जौहरी होगा, तो पहचान लेगा। लेकिन साधारण आदमी अनगढ़ हीरे को न पहचान पाएगा। पहले तो उस हीरे को निखारना होगा, साफ करना होगा, तराशना होगा। उस हीरे पर चमक लानी होगी। उस हीरे से धूल, असार झाड़ना होगा, तब साधारण आदमी पहचान पाएगा।

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